PAMM (Percent Allocation Management Module) और MAM (Multi-Account Manager), दोनों अकाउंटों के तहत निवेशकों के पैसे को इकट्ठा करके एक ट्रेडर उसे मैनेज करता है, लेकिन इन दोनों के काम करने के तरीके अलग होते हैं। आइए देखते हैं कैसे:
| फ़ीचर | PAMM अकाउंट | MAM अकाउंट |
| अकाउंट स्ट्रक्चर | पैसे को एक ही मास्टर अकाउंट में इकट्ठा कर लिया जाता है | अलग-अलग एलोकेशनों वाले कई इंडिविजुअल अकाउंटों की परमिशन |
| एलोकेशन मेथड | ये निवेशक की शुरुआती कॉन्ट्रिब्यूशन के अनुपात में होता है | कस्टमाइज़ किया जा सकता है (तय परसेंटेज, लॉट साइज़़, इक्विटी आधारित) |
| फ़्लेक्सिबिलिटी | कम फ़्लेक्सिबल; सभी निवेशक एक ही पूल में पैसा डालते हैं | सब-अकाउंटों में पैसे एलोकेट करने में ज़्यादा फ़्लेक्सिबिलिटी |
| सब-अकाउंटों पर कंट्रोल | सब-अकाउंटों पर कोई कंट्रोल नहीं, सभी अकाउंटों को एक ही अकाउंट के तौर पर मैनेज किया जाता है | इंडिविजुअल सब-अकाउंटों और उनकी एलोकेशनों पर कंट्रोल |
| प्रॉफ़िट/लॉस डिस्ट्रीब्यूशन | कॉन्ट्रिब्यूशन की परसेंटेज के आधार पर डिस्ट्रीब्यूट किया जाता है | हर निवेशक के लिए पूर्वनिर्धारित तरीकों के आधार पर एलोकेशन |
| जटिलता | मैनेज करने में आसान, ऑटोमेटिक प्रॉफ़िट शेयरिंग | ज़्यादा जटिल, जिसके चलते निवेशक ज़्यादा कस्टमाइज़ेशन कर पाते हैं |
| कस्टमाइज़ेशन | कस्टमाइज़ेशन के सीमित विकल्प | अकाउंट मैनेजमेंट के लिए ज़्यादा कस्टमाइज़ेशन की गुंजाइश |
PAMM या MAM अकाउंट के बीच का चुनाव क्लाइंट की पसंद-नापसंद और ज़रूरतों पर निर्भर करता है। और जानने के लिए अपने अकाउंट मैनेजर या क्लाइंट सर्विसेज़ टीम से संपर्क कर लें।